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Fence eating the crops

By


VED from VICTORIA INSTITUTIONS

It is foretold! The torrential flow of inexorable destiny!


English - Malayalam version Click here

 


Written and published online in 2007. Please note the Indian government employee salaries have gone up to astronomical heights in the last few years. They range from 20 to 40 times the average earnings of a common man in India, as of now. So the figures given in the below text needs to be changed. However, the translation into Hindi has been done by a professional translator way back in 2007. And I do not know Hindi. So I am unable to incorporate any sensible corrections in the below text.

02-01-20222



 

१९४७ में भारत कि स्थापना के बाद, एक नया देश सरकारी कर्मचारी वर्ग के स्वार्थी उदेश्यो कि पूर्ती करता जीवंत हुआ | पिछली अंग्रेज प्रशासकोंने इन्हें ‘जन सेवक’ का नाम दिया था | मगर, वस्तुतः अब वो ‘जन मालिक’ बने हुए है |

With the formation of India in 1947, a new nation catering to the selfish interests of the government employee class came into being. The erstwhile British administrators had named them as ‘public servants’. However, now they are literally the ‘public masters’.


लगभग हर नौजवान सरकारी कर्मचारी बनना चाहता है | बाकि सारी नौकरियां जैसे कि विक्रय, निर्माण, होटल, ऑटोमोबाइल सेवा, अन्य सेवा उद्योग, कम्पूटर का क्षेत्र, व्यापार और अन्य कामों को बहुत बहुत निचली दर्जे के व्यवसाय कि तरह देखा जाता है | इन नौकरियों को ईमानदार और सम्मानीय काम नहीं माना जाता है| ऐसा क्यूँ है?

Almost every youngster wants to become a government employee. All other jobs like sales, construction, hotelliering, automobile service, other service industries, writing, computer field, business and much, much else are seen as low-class professions. These jobs are not seen as honest and honourable work. Why is it so?


इसके मुख्य कारण भारतीय सामंतीय भाषाओं के भेदोंमें देखे जा सकते है, जो इन कर्मचारियों को निचली शब्द श्रेणी में दरशाते है|


The main reason of this can be seen in the codes of the Indian feudal languages, which grade these employees in the lower indicant word bracket.


हम ‘काम’ शब्द का इस्तेमाल सरकारी अफसरों के संदरव में न कर सकते है | वैसे सरकारी रोज़गार अब काम नहीं है | वो एक सामाजिक स्थान है | सरकारी कर्मचारी आज शानदार विशेषाधिकार और उत्तम विलासिता के हकदार है | उसी समय, इस देश कि ज़्यादातर आबादी अब भी भयानक स्थितियों में रह रही है |

One cannot mention the word ‘work’ with regard to the government officials. For government employment is now not a work. It is a social position. The government employees are entitled to fabulous privileges and superb luxury. At the same time, the majority population of this nation still lives in dire conditions.


इस देश के एक मामूली बढ़ई का मामला अगर लिया जाये. उसकी क्या कमाई है ? कुछ राज्यों में जहाँ अनियमित विदेशी धन का निवेश है (उदाहरण : केरेला), एक बढ़ई कि कमाई करीब ५०० रुपये/ प्रतिदिन है | मगर, कुछ राज्यों में यह बहुत ही कम है | आइये हिसाब लगाये उच्च वेतन श्रेणी को ध्यान में रखते हुए |


Take the case of an ordinary carpenter in this nation. What is his wage? In some states where an unregulated input of foreign money is there (example: Kerala), the wages of a carpenter is around Rs. 500/- per day. However, in most other states, it is much less. Let us calculate taking the higher wage scale.


अगर एक बढ़ई ३० दिन काम करता है, तो उसे १५००० /- हर महीने मिलेगा | मगर, ऐसा मुमकिन नही कि पूरे ३० दिन काम किया जा सके | साप्ताहिक छुट्टी और अन्य विकर्षण आ सकते है| तो, वो अधिक से अधिक २५ काम कर सकता है | इसका मतलब, ज़्यादा से ज़्यादा उसकी कमाई १२५००/- प्रति महीना होगी, अगर वो बहुत मेहनत करे तो |

If a carpenter works for 30 days, he will get 15000/- per month. However, it is not possible to work for 30 days. A weekly holiday and other distractions will come in. So, at the most he may work only 25 days. That means, at the best he will earn only around 12500/- per month, if he works hard.


अधिकांश अन्य श्रमिकों के लिये, मजदूरी और भी काम है | उनके पास ना ही सामाजिक ज़मानत, ना पेंशन, ना अतिरिक्त लाभ, अर्जित छुट्टी, महंगाई भत्ता, पुरस्कृत छुट्टी, यात्रा भत्ता, हर साल एक महीने का मुफ्त वेतन और इनके साथ और भी बहुत सरे भत्ते जिनका कि एक सरकारी कर्मचारी हकदार है |

For most other labour, the wages are much less. There is no social security, no pension, no bonus, earned leave, dearness allowance, gratuity, leave travel allowance, one month free salary every year and many other perks that a government employee is entitled to.


क्या उसे सरकार से कुछ मिलता है? यह बात संदेहास्पद है? वो अपने बच्चों को कहा भेजता है? ये बात साफ़ है कि उसकी सामर्थ सरकारी विद्यालय कि ही है, जहाँ उसके बच्चे उप् स्तरीय शिक्षकों के प्रभाव में आयेंगे ( आप, साब, मास्टर जी, जी, उन् इत्यादि) | यह शिक्षक इनके बच्चों के साथ तुच्च, निचली श्रेणी के शब्दों का इस्तेमाल करेंगे और उनके माँ बाप के बारे में भी ( तू, उस इत्यादि)| वो सोचता है कि अगर वो अपने बच्चों कि पढाई पे ज़्यादा पैसे खर्च करता है १८ साल के लंबे अंतराल तक, तो वे महान गुणवत्ता के साथ बाहर आयेंगे|

Does he get anything from the government? It is doubtful. Where does he send his children to? Well, he can afford only government schools, where again his children come under substandard teachers (Aap, Saab, Master Ji, Ji, UNN etc.). These teachers would use mean, lower indicant words to his children and about their parents (Thoo, USS etc.). He feels that if he spends much money on his children’s education for around 18 long years, they would come out with great qualities.


असल में होता यह है के इन बच्चों के अंदर सैधांतिक तौर पर निचली स्तर के व्यक्तियों को सम्मान देना का बोझ लाद दिया जाता है, जिन्हें ये सिखाया जाता है कि जी, साब, मास, सर इत्यादि कह कर पुकारे| इन शिक्षकों कि अंग्रेजी का कोई स्तर नहीं होता | ये बहुत ही चतुर लोग है जिन्होंने सांस्कृतिक नेताओं का चोला ओढ़ रखा है और उन्हें यह बताते है कि अंग्रेजी साम्राज्यवादीयों कि भाषा है | वो बताते है कि उनके लिये केवल स्थानीय सामंती भाषा ही अच्छी है | वो उन्हें बोलते है कि अंग्रेजी उनके लिये खराब है | यही अवधारणा बच्चों को शिक्षकों द्वारा परोसी जाती है |

Actually what happens is that the children are indoctrinated with the burden of loaded respect for low-standard persons, who they are taught to call Ji, Saab, Mash, Sar etc. These teachers do not have any standard in English. Very cunning guys who don the mantle of cultural leaders have told them that English is the language of the imperialists. They tell that only their local feudal vernacular is good for them. They tell them that English is bad for them. This idea is fed to the children by their teachers also.


हर साल लाखों (१०० हज़ार) विद्यार्थी अपनी दसवी कि परीक्षा लिखते है | वो अपने जीवन के १८ साल निचली स्तर कि शिक्षा में गवां देते है, जिसमें से कुछ ही फ़ायदा उठा पाते है | स्थानीय सामंती भाषा उन्हें बतलाता है कि कुछ ही रोज़गार जैसे कि डाक्टरी, इंजीनियरिंग, सरकारी नौकरी और उन जैसे काम बड़े रोज़गार है | ये उन्हें यह भी बतलाता है कि ज़्यादातर बाकि रोज़गार निचली स्तर के काम है | वो उन्हें आगे तुच्छ शब्दों के माध्यम से यह बतलाते है कि उनके माता-पिता निम्न स्तरीय व्यक्ति है | स्थानीय भाषाओं कि सामंती विशेषता इस सिद्धांत को बड़े अच्छे तरीके से शिखा देती है | सरकारी अधिकारिओं के साथ साथ आमिर बड़े ही चालाक होते है | उनके पास धन है | वो चाहे तो अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे विद्यालयों में भेज सकते है | बाद में वो अपने बच्चों को अंग्रेजी भाषी राष्ट्रों में भेजते है | जब ये बच्चे इन अंग्रेजी भाषी राष्ट्रों में पहुँचते है, तो वो वहाँ के समाज और स्थानीय लोगों को उन निचली स्तरीय शब्द श्रेणी के इस्तेमाल से दूषित करना शुरू कर देता है | उसी समय वो भारत में रह रहे लोगों को उनके दोषों के बारे में भाषण देते है | वो ऐसी भावना दरशाते है जैसे कि वो प्रतिभाशाली बुद्धिमान है, और यहाँ रह रहे लोग बेवकूफ है |

Every year lakhs (100 thousands) of students write their 10th class exam every year. They waste around 18 years on low quality education, from which only very few gather any benefit. Local feudal vernaculars inform them that only certain jobs like that of doctors, engineers, government employment and such are big jobs. It also informs them that most other jobs are low grade. They further inform them by means of lower words that they parents are low quality persons. The feudal quality of the local vernaculars indoctrinates this fantastically. The government officials as well as the rich are very cunning. They have money. They can send their children to the best schools if they want. Later, they sent their children to English nations. Once these children arrive in English nations, they spoil the society there by using the same lower grade indicant words about and on the local people there. At the same time, they lecture to the people stuck back in India about their various faults. The feeling that they exhibit is that they are the intelligent geniuses, while the rest of the people stuck here are fools.


भरतीय सरकारी अधिकारीयों को शानदार तनख्वाहें और भत्ते मिलते है | भारत में सरकारी नौकरी के बहुत सारे स्तर है, जहाँ पे पूरी आमदनी और भत्ते करीब ६०,००० से १२५,००० प्रति महीना होती है | ज़रा कल्पना कीजिये इस चौंकाने वाली असमानता कि इनमें और एक मामूली मेहनती मजदूर में , जोकि भारत में करीब ४००० से १५००० रुपये प्रति माह { ज़्यादातर करीब ४०००/- प्रति माह या इससे भी काम कमाते है } और ये डकैत कितना कमाते है |

Indian government officials get fabulous salaries and perks. There are many levels of government employment in India, where the total salary and perks come between 60,000 to 125000 rupees per month. Just imagine the shocking disparity between a hardworking common worker who in India actually earns between 4000 to 15000 rupees per month {majority earn near to 4000/- per month or even below that amount} and what these dacoits earn.


बहुत मध्य स्तरीय सरकारी अधिकारी करीब ४० से ६० हज़ार रुपये प्रति माह कमाते है | यहाँ तक कि एक चपरासी कि आय करीब १५००० या उससे ज़्यादा प्रति माह हो सकती है | इस परिदृश्य में एक आम आदमी कहाँ खड़ा होता है ? कल्पना कीजिये उन असंख्य लोगों की जोकि इस देश के सैकड़ों हजारों दुकान में सामान बेचते या बेचती है | उनके आय कि सामान्य स्तर क्या है ? २००० से ६००० तक हो सकती है | शायद ही अधिक हो कभी |

Many middle level government officials earn between 40 to 60 thousand rupees per month. Even a peon’s wages can be 15000 and more per month. Where does the ordinary man stand in this scenario? Imagine the immense people working as salesmen and saleswomen in hundreds of thousands of shops in our nation. What is their common level of wages? It may vary from 2000 to 6000. Very rarely more.


इंग्लॅण्ड में एक महाविद्यालय के प्राध्यापक कि आमदनी करीब डेढ़ से दो गुना होगी एक बढ़ई के संभव मासिक आमदनी से | और यहाँ भारत में, एक प्राध्यापक ७५००० + + + कमाता है जब कि एक बढ़ई ४०००/- और १२५००/- +० +० +० |

In England, the salary of college professor is at the most around 1½ to 2 times that of a carpenter’s possible monthly earnings. Over here in India, the professor earns 75000 + + + while a carpenter gets between 4000/- and 12500/- +0 +0 +0.


ये हाल में ही हुआ कि एक सरकारी कर्मचारी के भत्ते हद से ज़्यादा बढ़ गए | सच्चाई तो यह है कि इस कानूनन लूट कि शुरुवात आठवे वेतन आयोग के लागु होने से हुई |

It was only very recently that the perks for the government employee became so exorbitant. Actually it was the 8th Pay Commission that started this legally sanctified loot.


भारतीये भाषाएँ बड़ी सामंती होती है | इन भाषाओं में, हमें हर एक शब्द संबोधन और संधर्भ के हसाब से बदलना पड़ता है अपनी कमाने कि झमता और सामजिक स्थान के हिसाब से | दुनिया कि बहुत सारी और भाषाएँ भी है जिनमें इस तरह कि नाक्रत्मकता है | लेकिन केवल कुछ ही भाषाएँ है जैसे कि अंग्रेजी जिसमें इस तरह कि नाक्रत्मकता नहीं है |

Indian languages are very feudal. In these languages, one has to change each and every word of address, and reference depending on one’s relative earning capacity and social position Many other world languages also have similar negativities. Only a few languages like English do not have this negativity.


भारतीये भाषाएँ स्वाभाव से बड़ी सामंती होती है | बहुतसारे शब्द जैसे ‘यू, ही, शी, हिज़, हर्ज़, देयेर’, और अत्यधिक जुड़े हुए शब्द विविधता के साथ आते है, हर एक शब्द बदलते सामजिक स्तर को दर्शाता है और उनके आजादी के अन्य मापदंड | यह संहिताए भारतीये संविधान कि भावनाये के बिल्कुल विरुद्ध है |क्यूंकि संविधान कानून के सामने बराबरी का अधिकार और गरिमा कि बराबरी का आश्वासन देता है हर नागरिक को | यहाँ कि सामाजिक और प्रशासनिक सच्चाई को देखते हुए संविधान के यह शब्द केवल मुखौटे बन के रह जाते है | यह वाक्य देखे: { ही बिट हिम } : (उन उसको मार किया और उस उन्को मार किया.) इनमे से कौन सा अपराध है? अगर यह संहियाये है जिनमें न्यायतंत्र को घटनाएं नियंत्रित करनी है, तो एक आम आदमी को न्याय कैसे मिल सकता है?

Indian languages are very feudal in nature. Many words like ‘you, he, she, his, hers, their’, and immense connected words come with a variety of terms, each signifying differing social status. Each word also, contains codes that limit a person’s social limits, and other parameters of freedom. These codes are totally against the spirit of the Constitution of India. For the constitution assure equality before the law and equal dignity to all citizens. The words of Constitution of India remain just a facade considering the social and administrative reality here. See the sentences: {He beat him}: UNN ussko maar kiya and Uss UNNko maar kiya. Which one is a crime? If this is the codes in which the judiciary has to define incidences, how can the common man get justice?


एक आम आदमी और एक सरकारी अधिकारी के बीच संचार के वक्त सारे बड़े शब्द जैसे आप, साब, उन्, सर एंड बाकि बहुत सारे सरकारी अधकारी के अधिकार होते है | उस आम आदमी को किसी भी स्तर के शब्दों से पुकारा जा सकता है जिनमे तू, तुम उस और बाकि नीची श्रेणी के शब्द | वास्तव में, इस आधुनिक भारत राष्ट्र में राजशाही का मतलब सरकारी अधिकारी है | आम आदमी उनके लिये केवल गुलाम कि तरह है |

In a communication between the common man and a government official,all the higher words like Aap, Saab, UNN, Saar and much else are the right of the government officials,. The common man can be addressed by any level of words including a Thoo, Thum, USS and many other lower indicant words. In fact, in the modern nation of India, the government officials are the royalty. The common man is just a serf to them.


उदाहरण के लिये, अगर एक सरकारी अधिकारी और एक आम आदमी में एक विवाद हो, तो अधिकारी को पुलिस स्टेशन में बैठने को एक कुर्सी दी जाती है और उन्हें आप या साब कह कर संबोधित किया जाता है | उसी वक्त आम आदमी को खड़े रहना पड़ता हैं | उसे तू कह कर संबोधित किया जाता है, और उसके बारें में बात करते वक्त उस और अन्य निचली दर्जे के शब्दों का इस्तेमाल होता है | इन सब के बाद, यह ज़ाहिर है कि उन आम आदमी कि ओर और अपशब्दों का प्रयोग हो| यह भी संभव है कि उसकी बुरी तरह पिटाई हो और उसे मर के कम्चुम्बा बना दिया जाये| वैसे ऐसा भेदभाव भारतीये संभिदान के अनुसार जायज़ नहीं है | संभिधान द्वारा सामाजिक गरिमा के लिये बराबरी का अधिकार साथ ही क़ानून और प्रशाशन के सामने बराबरी का अधिकार आश्वासित है | इनकी अवहेलना करना अपराध है |

For example, if there is a dispute between a government officer and a common man, the officer gets a seat in the police station and is addressed as Aap and Saab. At the same time, the common man has to stand. He would be addressed as Thu and referred to as USS and other lower grade words. When this is done, it is quite certain that more abusive words would be directed towards the common man. He can even be beaten to a pulp. However, this discrimination is not allowable as per the wordings of the Constitution of India. For, equal rights to social dignity and equality before the law and administration are assured by the Constitution. To violate this is a crime.


अब और क्या ? उनका वेतन अपने आप में शानदार है | अंग्रेजी भाषी राष्ट्रों में हर एक के लिये सामाजिक सुरक्षा है | उदाहरण के तौर पर इंग्लैंड में अगर कोई व्यक्ति बीमार है और काम नहीं कर सकता/ सकती तो भी वो सामाजिक वित्तीय सहायता के अधिकारी है | वास्तव में, हर कोई सामजिक सुरक्षा कोष का अधिकारी है, अगर वो महिला या पुरुष आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है | यह हर एक का आधिकार है | नाकि केवल कुछ सरकारी अधिकारीयों का |

Now what else? The salary itself is fabulous. In English nations, there is social security for everyone. For example in England, if one person is ill and cannot work, even then, he or she is entitled to public financial support till he or she is fit to work. In fact, everyone is entitled to a social security fund, if he or she is not financially fit. This is everyone’s right. Not just the right of a few government employees.


एक सरकारी कर्मचारी को वृत्ति (पेंशन) पाने का अधिकार है| देश के दूसरे नागरिक, जो और क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, उन्हें नहीं है|

A government employee is entitled to a pension. Othercitizensof this nation, who also have been working in many fields, are not!


सरकारी कर्मचारी की वृत्ति (पेंशन) ख़ूब है| एक आम आदमी, जिसने अपनी सारी ज़िंदगी संघर्ष किया है, जानता है की अगर मरते दम तक उसने रोज अपने लिये नहीं कमाया, तो वो हमेशा बर्बादी की कगार पर खड़ा रहेगा| जबकि उसका पडोसी, जिसने सारी उम्र एक सरकारी कर्मचारी के रूप में खुदको बहोत मनोरंजित किया है, शाही पेंशन पाता है| आम आदमी और उसके बच्चों को अपनी रोजगारी, सरकारी कर्मचारी और उनके बच्चों की सेवा करके कमानी पड़ती है|

The government-employee pension is fabulous. An ordinary person, who has literally toiled for the whole of his life, finds that unless he fends for himself everyday till his death, he is literally always on the verge of disaster. At the same time, a neighbour of his, who has simply entertained himself as a government employee all his working life, gets a royal pension. The common man and his children are forced to eke their livelihood as the serving class of the government employee and his/her children.

सारे कायदे और क़ानून सरकारी कर्मचारियों द्वारा ही लिखे जाते हैं| जो राजनीतिज्ञ कुछ समय के लिये सत्ता में आते हैं, उन्हें काबू नहीं कर पाते| क्यूंकि वो खुद कठिन परिस्थितियों में होते हैं : खुदको कार्यवृत श्रेणी के दर्जे में रखने के लिये जूझते|

All laws and rules are basically written by the government employees. The politicians who come to power for small periods of time are not able to control them. For, they themselves are in very precarious conditions: fighting and struggling to keep themselves up to the levels of the official class.


सरकारी कर्मचारियों ने, बड़ी चतुरता से, एक नया बेईमानी का तरीका इजाद किया है, ‘वृत्ति का विनिमय’ (“कम्यूटेशन ऑफ पेंशन”) पहले सेवानिवृत्ति के बाद, १५ साल की पेंशन को जमा किया जाता था, फिर उसका आधा किया जाता था| एक सरकारी कर्मचारी को सेवानिवृत होने पर ये सारा रूपया एक साथ मिल सकता था | लेकिन दिक्कत ये थी, के इसके बाद ज़िंदगी भर उसे हर महीने सिर्फ आधी वृत्ति ही मिलेगी.

The government employees, with much cunningness, have evolved another cheating system called ‘Commutation of Pension’. The earlier version of this was like this: After retirement, the total amount of pension for 15 years is totalled. The exact half of this is then calculated. A government employee can opt to take this amount in bulk at the commencement of his retired life. The only problem was that for the rest of his life, he would be entitled to only half pension per month.


लेकिन अब, ये अपने आप में एक ग़लत बात है| पहली बात, सिर्फ सरकारी कर्मचारी को वृत्ति पाने का अधिकर है| दूसरी वृत्ति सिर्फ जीवित व्यक्ति को दी जाती है| यहाँ केवल साढ़ेसात वर्ष की वृत्ति एक साथ दी जाती है| तीसरी बात, ये पैसा नागरिक के आयकर में से दिया जाता है, जो रूपया देश की उन्नति और नागरिक सेवा में लगनी चाहिए| ये सरकारी नौकरों पे फिजूलखर्च के लिये नहीं है| चौथी बात, आम आदमी के पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे वो और उसके बच्चे सरकारी कर्मचारी से आर्थिक रूप में टक्कर ले सकें| क्यूंकि, सरकारी कर्मचारी को दरियादिली से रकम दी जाती है, जबकि आम आदमी और उसके बच्चे एक एक रूपया कमाने को तरसते हैं.

Now, this itself is a great anomaly. For one thing, only government employees are entitled to pension! Second, pension is to be given only as long as a person is alive. Here simply 7½ years’ pension is given in a lump. Third, this huge sum is taken from the public exchequer. This amount is actually meant for developmental and public service activities. It is not for squandering on public servants. Fourth, the common man has nothing with which he and his children can compete with the government employee financially. For, the government employee is flushed with funds, while the common man and his children are finding it hard to earn each rupee.


अब ये विनिमय बेवकूफ़ी का पहला हिस्सा है| अगला हिस्सा और भी ग़लत है| पहले ये पाया जाता था के ज़्यादातर वृत्ति पानेवाले लोग, ६५ वर्ष की आयु से पहले मर जाते थे| अब क्यूंकि उनके पास ज़्यादा पैसा होता है, इसलिए उनका सेवा निवृत्ति के बाद का जीवन बहोत बढ़िया से गुज़रता है| वो सामंतो की तरह जीते हैं| बहोत तो ६५ वर्ष की आयु के बाद भी नहीं मरते| अब उन्होनें तो केवल १५ वर्ष की वृत्ति एक साथ ली थी, तो १५ वर्ष के बाद भी उन्हीं क्यूँ केवल आधी पेंशन मिलनी चाहिए?

Now this is the first part of this Commutation Nonsense. What comes next is more criminal. Earlier, it was found that most retired persons used to die before their 65th year. Now with more funds at their command, their retired life is also a fantastic time. They live as feudal lords. Very few aredying even much after their 65th year. Now, they had commuted only their 15 years pension. Why should they get only half pension after those 15 years?


सरकारी कर्मचारी यहाँ कायदे बनाते हैं| उन्होनें अब ये कायदे बदल दिए हैं| अब अगर वो अपनी वृत्ति परिवर्तित करते हैं, तो भी उन्हें १५ वर्ष बाद भी पूरी वृत्ति मिलेगी. कितने आम आदमी “वृत्ति के विनिमय”(“कम्यूटेशन ऑफ पेंशन”) और उसमे हुए बदलाव के बारे में जानते हैं? ज़्यादातर लोगों को ज्ञान ही नहीं की वो अपने सरकारी सेवकों पर कितना खर्च कर रहे हैं|कौन इसपर नज़र रखता है? कौन इस लूट की इजाज़त देता है? किसकी ज़िम्मेदारी के तहत?

The government employees make rules here. They now changed the rules. Now, if they commute their pension, they will get full pension after the 15 years. How many common citizens here know of commutation of pension, and all these later developments? Most of the people do not have any idea about what it is that they are paying to their own public servants. Whose is in charge? Who is allowing all this loot? Under whose authority?


मैंने कई औरतों को बहोत दुखद माहौल में काम करते देखा है, पत्थर तोड़ते , उनके बच्चे उनके कन्धों पर बंधे हुए| उन्हें अपनी सरकार से क्या मिला है? कुछ नहीं| क्या ये उस आज़ादी का एक ज़रूरी हिस्सा है, जो हम हर वर्ष मनाते हैं?

I have seen many women working in very tragic circumstances, breaking stones, with their children tied in a bundle on their shoulders. What have they got from their government? Nothing. Is this an essential component of the freedom we are celebrating every year?


अगला मुद्दा : बैंक जाके लोन लीजिए| अगर आप सरकारी कर्मचारी हैं, हर चीज़ के लिये लोन है| फ्रिज्ज, कंप्यूटर, गाडी और हर छोटे और बड़े उपकरणों के लिए , यहाँ तक की शानदार घर बनाने के लिए भी | सरकारी कर्मचारी को इतनी बढ़िया तनख्वाह और भत्ते मिलते हैं, जिससे उन्हें आर्थिक द्रिढता मिलती है, एक अच्छा फायदा| एक आम आदमी की तरफ उनके स्वभाव में अंतर, जिसे उन पैसों की ज़्यादा ज़रूरत है, हर उस इंसान को दिखेगा जिसने बैंक को इसके बारे में पुछा है| बहोत मामलों में कहा जा सकता है की ज़्यादातर सरकारी बैंक केवल सरकारी कर्मचारियों और उनपर निर्भर लोगों के फायदे के लिये बनाये जाते हैं| बैंक के लिये वो काफी आकर्षिक ग्राहक भी होते हैं| क्यूंकि वो बहोत आर्थिक स्थिरता के साथ आते है|

The next item: Go to a bank and seek a loan. If you are a government employee, loan for almost everything.For refrigerator, computer, car and every other small and big gadgetry to even building houses. The fabulous pay and perks given to the public servant turn into fabulous collateral security, as a frill benefit. The sharp difference in attitude to an ordinary man over here, who is actually in more need for funds, is visible to anyone who has dared to approach a bank. In many cases, it may be said that most of government banks exist simply for the benefit of the government employee and his dependants. The banks also find them as attractive customers. For they come with solid security.


काफी वर्ष पहले(१९८०), मैंने एक छोटी सी जांच की, के किस तरह के विद्यार्थी व्यावसायिक सरकारी कॉलेजों में, जैसे मेडिकल, इंजीनियरिंग में पहुँचते हैं| उस वक्त, इंजीनियरिंग सीट भी बहोत अच्छी मानी जाती थी, आज की तरह नहीं जहाँ उसके माप दंड इतने नीचे गिर चुके हैं|ये पाया गया के ज़्यादातर विद्यार्थी सरकारी कमर्चारियों के बच्चे थे|जब मैं अंग्रेज़ी सीख रहा था, तो ये पाया की, सरकारी कर्मचारियों के बच्चे, फिर चाहे चपरासी के, ज़्यादा अच्छे कपड़े पहेनते| ज़्यादा आत्म-विश्वास रखते, अच्छा खाना खाते और आजीविका की अच्छी संभावनाएं भी पाते| जबकि औरों के बच्चे, खासकर कार्यवृत स्तर के, खुद को छोटा महसूस करते पाते, साथ में गरीबी और निचले स्तर के अपशब्दों को भी झेलना पड़ता|

Many years ago (1980), I did a minor enquiry on the type of students who reach professional government colleges like Medical, and Engineering. At that time, engineering seat was also a prized one, not like now when it has reached standards of sheer immensity. It was found that most of the students were the children of government employees. When I was taking English classes, I found that the children of government employees, even peons, were better dressed, more confident, better fed, and also with better career possibilities. The children of others, especially of the working class, were simply bearing a lot of inferiority complex, along with the burden of their lower financial status and lower indicant feudal language words.


सरकारी कर्मचारीयों को इसलिए काम दिया जाता है, ताकि वो लोगों का भला कर सकें, और उन्हें बेहतर बना सकें| यहाँ हमें पता चलता है के उन्होनें दश की सारी पूँजी, सहूलतें और धन का गबन कर लिया है|

Government employees are posted to seek to the welfare of the people and for making them better. Here what we find is that they have cornered almost all the funds, amenities, and resources of the nation.


इससे एक बहुत खतरनाक परिस्थिति पैदा होती है| पहले से ही सरकारी अफसरों को बहुत अच्छी सुविधाएं प्राप्त हैं| इसके साथ आता है हमारा पुराना सामंती ओहदा, जो भाषा से मिलता है| किसी भी सभ्य देश में, सरकारी अफसर एक आम आदमी को ‘जनाब’ (सर) कहके बुलाते हैं| केवल भारत में आम आदमी एक सरकारी अफसर को ‘जनाब’ कहके बुलाता है|

What this forebodes is a very, very dangerous situation. For, as it is, the government officials are loaded with exquisite privileges. Along with this comes the ancient feudal positioning that they are now claiming in language. Actually, in any civilised nation, the government official should naturally address a member of the public with a ‘Sir’. In this nation, it is the common man who has to ‘respect’ their public servants.


अब एक सरकारी कर्मचारी की श्रेणी क्या होती है? अंग्रेज़ी सरकार द्वारा लिखित कायदों के अनुसार, किरानी सिर्फ कार्यलाय के अंदर का काम करने के लिये होते हैं| अब वो फैसले भी लेते हैं| ये ठीक होता अगर वो काबिल होते| देखा जा सकता है के ज़्यादातर सरकारी किरानी को कम ज्ञान, जानकारी होती है, और वो अंग्रेज़ी में भी कमज़ोर होते है| तीसरी बात बहुत अहम है, जिस इंसान को अंग्रेज़ी नहीं आती, वो समाज को एक सामंती नज़र से ही देख पाता है| वो येही मानेगा के वो और उसके साथी सरकारी अधिकारी श्रेष्ठ लोग हैं; भारतीये भाषाओं में ऐसे ही शब्द इस्तेमाल किये जाते हैं|

Now, what is a government official’s grade? Under the British-instituted public services, the clerks are just to do the inner office work. Now they have taken over decision-making. This would have been okay if the persons concerned were with enough calibre. It may be found that most government clerks are of very meagre knowledge, information and also very much lacking in English. The third factor has a terrible input, in that a person who does not know English, can imagine the society only in a very feudal manner. This person will naturally believe that he and his fellow government officials are superior beings; thus being the words they possess in Indian language terminology.


अब, मैं आपकी नज़र में हमारी राजकियता का एक और पहलु लाना चाहता हूँ| के वो लोग, अपने ओहदों के लिये भयभीत करने वाले शब्द चाहते हैं, ताकि आम लोग डर के मारे उन्हें और इज्ज़त दें|

Now, I need to bring into focus another feature about our bureaucracy. That is, they all want intimidating words as their designation, so that ordinary people can be terrified to give more respect.


मैं एक खूबसूरत कहानी बता सकता हूँ, जो हुई थी | जब अंग्रेज़ भारत पर राज कर रहे थे| हर राज्य में ज़मीन पूंजीकरण विभाग, बहुत महत्वपूर्ण था|वो देश के अव्वल पैसा कमाने वाले विभागों में से एक था| उसके प्रमुख को पूंजीकरण का इंस्पेक्टर जेनेरल कहा जाता था| अंग्रेजों के जाने के बाद, उसका महत्व कम हो गया है| तब भी, विभाग का प्रमुख होने के नाते, और इसकी इस ज़बरदस्त खूबी के कारण, इसका इस्तेमाल कार्यकर्ताओं द्वारा बड़े बड़बोले और ढकोसले तरह से किया जाता था|

I can give a beautiful story that happened. When the British were ruling India, the land Registration department, in each state, was a very significant one. It was one of the main revenue accruing departments in the country. The head was known as the Inspector General of Registration. Since, the departure of the British, its significance has come down. Yet, as the title of a head of a department, and because of its striking quality, it was used by the incumbents with ample pomp and pageantry.


अंग्रेज़ राज्य के दौरान, आई.जी. के नीचे जिला रजिस्ट्रार होते थे|हर राज्य के हर ज़िले में एक होता था| एक छोटे भारतीय राज्य में, चतुर कार्यकर्ता, खुले में पदोन्नति की संभावनाओं की बात कर रहे थे| किसी ने आई.जी. और जिला रजिस्ट्रार के बीच श्रेणी रखने का सुझाव दिया | दरअसल किसी कारणवश नहीं, बल्कि पदोन्नति के मौकों को बेहतर करने के लिये|राजकीय कार्यकर्ताओं को जो चाहिए वो उन्हें मिल जाये| ताकि वो दोनों योजनायें बनाये और उन्हें लागू भी करें| राज्य के प्रमुखालय में एक जोनल इंस्पेक्टर का पद रखा गया|

During the British times, below the rank of the IG were the District Registrars. They were one in each district of the state. It so happened that in one small Indian state the scheming bureaucrats in this department were very visibly discussing the possibility of getting more promotion opportunities. Someone suggested the need to have some official grade between the IG and the District Registrars. Actually, not for any need, but to improve the chance for promotion. What the bureaucrats need, they can get. For they do both the conspiring as well as the execution. One Zonal Inspector post was initiated in the headquarters of the State.


ऐसे पदोन्नति का एक मौका बढ़ गया| लेकिन और थे जो बाक़ी रह गए. तो फिर से, योजना और लागू करना | छोटे राज्य को तीन हिस्सों में विभाजित करके तीन और पद बनाए गए |तो अब चारों अफसरों को अलग-अलग कार्यालय, गाडी, फ़ोन, चपरासी, नीचले और ऊंचले दर्जे के किरानी, सुपेरिनटेनडेंट और बाकी की ज़रूरतें| पहले आई.जि. के लिये दिया गया कागज़ सीधा उसके पास ही जाता था| लेकिन अब बहुत से नौसिखिए उसका अध्यन करते और उसे रेड टेप में उलझा देते|

One promotion chance was thus increased. But then there are others who are left out. So, again, conspiracy, and then execution. Three more posts were created after officially dividing the tiny state into three zones. Now, all the four officials need separate office, official vehicles, official phones, peons, lower division clerks, upper division clerks, superintendents and a whole lot of other paraphernalia. Earlier a paper forwarded to the IG went straight to him, from the lower levels. Now, a lot of nitwits would sit over it to study, and wrap it in a vicious red tape.


अब तक जो हुआ वो ठीक| फिर भी शक और संदेह की एक परेशान करती भावना रह गयी| जब मैंने एक कार्यकर्ता को कहते हुए सुना “ज़ोनल इंस्पेक्टर सुनके लगता है पुराने वक्त के सफ़ाई का इंस्पेक्टर”| अंग्रेज़ राज्य के दौरान, ये इंस्पेक्टर नगरपालिका से आता था, और शौचालय देखता था, आम एवं निजी, किसी तरह की सफ़ाई की कमी के लिये, जिसके कारण संक्रमण या बिमारी फैले|

So far so good. Yet, still a nagging feeling of a lingering doubt and misgiving. As I heard one bureaucrat saying, “The word Zonal Inspector sounds like the old Sanitary Inspectors”. During the British times, this was an Inspector from the Municipality, who would come and check all the latrines, both private as well as public, for any incidence of lack of neatness, which may give cause for infection and epidemic.


तो, फिर षड्यंeत्रऔर बाद में उसे लागू करना|ज़ोनल इंस्पेक्टर को बदलके डेप्युटी इंस्पेक्टर जेनेरल कर दिया गया| अब ये एक बहुत रौबदार ओहदा हो गया है| हर कोई प्रभावित है, जबकि पदधारी की शकल एक डकैत से मिलती हो|

So, again conspiracy, and then execution. The name Zonal Inspector was changed to Deputy Inspector General. Now, it is very formidable title. Everyone is impressed, even though the incumbent may have the sneaky looks of a dacoit.


पाठक ये ध्यान में रखे के ये सारी चालें केवल राजकीय कार्यकर्ताओं के अहम को शांत करने के लिये थी| इस में जो बहुत सारा पैसा लगता, वो जनता द्वारा दिए गए पैसों में से दिया जाते |

The reader may bear in mind that all these manoeuvres were just for the ego satiation of the bureaucrats. The extravagant higher expenses it incurs are taken from the public coffers.


स्वतंत्रता के आने से किसे आज़ादी मिली? नाम की ये आज़ादी केवल राजकीय कार्यकर्ताओं को मिली|

With the coming of independence, who got freedom? The so-called freedom was only for the bureaucrats.


पाया गया है की काफी तालुक दर्जे के पद, जैसे तालुक सेल्स अफसर, तालुक कृषि अफसर आदि को, अब सहायक कमिशनर और सहायक डरेक्टर आदि बुलाते हैं|इससे आम जनता का क्या भला होता है , ये एक फ़िज़ूल का सवाल है|क्यूंकि, जनता सुविधाओं के लिये पैसे देती है, नाकि किसीकी इज्ज़त करने या किसीके सामने झुकने के लिये|जितना खराब पद होता है, उतना ही खराब उस नीचले श्रेणी के कार्यकर्ता का बर्ताव होता है, जो उस पद पर होता है|

It has been found that many Taluk level posts like Taluk Sales Tax officer, Taluk Agriculture Officer etc. are now renamed as Assistant Commissioner and Assistant Director etc. What good does it do for the general public, is a moot question. For, the public pays for service, not of having persons to respect, and bow to. The more terrible is the title, the more terrible is the behaviour of low grade bureaucrats who don these titles.


अब पुलिस को देखते हैं| पुलिसवाले लोग बहोत अच्छी खूबी वाले और अंग्रेज़ी जानने वाले होने चाहियें| क्यूंकि उन्हें आपातकालीन समस्याओं से लड़ने के लिये बहोत बड़ी ज़िम्मेदारियाँ और ताक़त की ज़रूरत होती है| नहीं तो आम आदमी को तकलीफ़ होगी| भारत में पुलिस कांस्टेबल को सिपाही या चपरासी का दर्जा दिया जाता है| जिस तरह के लोगों को कांस्टेबल बनाया जाता है , वो भी उसी दिमागी स्तर के होते हैं| उनसे उनके वरिष्ठ अधिकारी ऐसे हीबात करते हैं|और येही लोग आम लोगों से मिलते हैं और उनसे सवाल जवाब करते हैं| आम आदमी की दयनीय स्थिति के बारे में सोचिये, जिसे ये सिपाही दर्जे के कांस्टेबल तू तड़ाक करके बात करते हैं|

Now let us see the Police. Policemen and women should be persons of very good quality and English knowledge. For they are to possess very great responsibilities and powers to deal in emergencies. Otherwise it the common man who is going to suffer. The police constable now in India is actually designated as a ‘sipai’ or peon. The type of persons who are taken as constables are also of this mental grade. They are treated in this level by their senior officials. Yet, these are the very persons who are to question and interact with the common man. Imagine the plight of the common man in India, when he is communicated to as ‘Thoo, ‘USS, by the ‘sipai’ level police constable.


वरिष्ठ पालिक अधिकारी भी कांस्टेबल को इन्हीं शब्दों से संबोधित करते हैं| येही परवरिश ऊपर से नीचे तक आकार आम आदमी तक पहुँचती है|आज के समय में, भारत में एक आम आदमी का ओहदा , एक सिपाही दर्जे के पुलिस कांस्टेबल से कहीं नीचे है|अगर यही वो आज़ादी है जिस पर भारतीय हक़ जमाते हैं, तो ये बहोत दयनीय आज़ादी है|

The senior police officials also address the constable with these words. This conditioning is continued down to reach the treatment met out to the common man. In fact, the present-day standard of the common Indian is much below that of the ‘sipai’ level police constable. If this is the so-called freedom claimed by Indians, then it is a very pitiable level of freedom.


पुलिस से जिस भी काम में व्यवहार होता है, वो गिर चुका है| पुलिसवाले आम आदमी से सिर्फ तू तड़ाक करके ही बात करते हैं| तो सोचिये उन लोगों का दर्जा जो इस तरह स बात करने से ही काम कर पाते हैं| किसी भी आत्म सम्मान वाले इंसान के लिये एक गाडी चालाक की नौकरी करना बहोत मुश्किल है| सिर्फ वो लोग जो नीचले दर्जे के शब्दों को सह सकते हैं, ऐसे काम कर सकते हैं|गाडी एक ऐसा ताक़तवर यन्त्र है जिसे चलाने के लिये एक स्थिर इंसान की ज़रूरत होती है जो इससे व्यस्त सड़कों और मुश्किल ट्राफिक परिकल्पनाओं में से निकाल सके|

Every job that has to interact with the police has been degraded. The policemen can only address a common person with a ‘Thoo’ and refer to him with a ‘USS’. Imagine the quality of persons who can then function at this level of communication. It is very difficult for any man with some level of self-respect to work as a commercial driver. Only persons who can bear and like the lower level words can exist in these professions. Automobiles are powerful machines that require undisturbed persons to manoeuvre them through the busy roads and complex traffic designs and requirements.


किसी भी पुलिसकर्मी को इस देश के नागरिक पर हाथ उठाने का अधिकार ना तो इस देश का संविधान देता है और ना ही कोई क़ानून वो ज़बरदस्ती का इस्तेमाल केवल तब कर सकते हैं जब कोई मुजरिम प्रवृत्ति के लोग गिरफ्तार होने में आना कानी कर रहा हो| उन्हें इस देश के नागरिक को मारने का या गाली-गलोच करने का कोई हक़ नहीं है, और नाही तू तड़ाक करके बात करने का|अगर इसकी इजाज़त है, तो ये कहने का कुछ मतलब नहीं है के भारत आज़ाद नागरिकों का एक स्वतंत्र देश है|

No policeman has been given the right to beat any citizen of this nation by the constitution or by any statutory law. They can only use force when anyone with criminal intentions is resisting arrest. They have no right to beat or to use abusive words, or for that matter such degrading words like ‘Thoo’ etc. to a citizen of this nation. If this is allowable, then there is no meaning in claiming that India is a free nation of persons with individuality.


यहाँ ये समझने की ज़रूरत है की पुलिसकर्मी लोगों को इसलिए मारते पीटते हैं क्यूंकि उनमें ऊंचे दर्जे की बात चीत करने की क्षमता नहीं होती| सो सवाल ये है के पुलिसकर्मी कैसे उन नागरिकों से अंग्रेज़ी में बात कर सकते हैं जिन्हें खुद ही अंग्रेज़ी नहीं आती| ये हमें भारत के शिक्षण गन के सबसे अद्भुत बात पे लाता है| ये खोखले विशेषज्ञ चाहते थे के केवल उनके बच्चों को अंग्रेज़ी सीखनी चाहिए| ये उनके छोटे दिमाग वाले हित में था के आम आदमी के बच्चों को अंग्रेज़ी ना आये| काफी महत्वपूर्ण भारतीयों की इसीमानसिकता के कारण वो दूसरे भारतीयों से काफी चीज़ें बाँट नहीं सकते| उन्हें डर था के अगर दूसरे भारतीयों को अंग्रेज़ी आ जायेगी तो उनके बच्चों को जो इज्ज़त उन बच्चों से मिलती थी, वो बंद हो जायेगी| अभी भारत के केवल ५ प्रतिशत लोगों को अंग्रेज़ी आती है.

What has to be understood is that the policemen beat and use abusive manners just because they are not having the calibre to use higher level of interaction and techniques of investigation. Then the natural question comes of how they can interact in English with the citizens here, when the citizens themselves do not know English. This brings us to a most interesting fact about Indian Educators. These so-called shallow experts were very keen that only their children should learn English. It was in their narrow interest to see that the children of the common Indian do notget access to proper English. This very mentality is a common feature of many prominent Indians, who do not want to share any advantage they have with other Indians. What they fear is that if the other Indians are allowed to learn English, they and their children would naturally lose the respect that they were claiming from other Indians. This very negative mentality itself has brought many curses on our nation. Now only 5% of the Indian population know English.


सबसे पहली ज़रूरत ये है, के आम आदमी को अच्छी अंग्रेज़ी सीखने का मौका मिलना चाहिए| नाकि वो जो अभी सरकारी और निजी विद्यालयों में सिखाई जाती है| फिर उससे खुद तय करने दो के अंग्रेज़ी उसके लिये ठीक है की नहीं| दूसरे चतुर कमीनों को ये तय करने का अधिकार नहीं देना चाहिए|

What is urgently required is that the common man should be given the opportunity to learn good quality English. Not the one that is now being taught in both government as well as private schools in our nation. Let him then judge for himself if English is good for him or not.Other cunning rascals should not be allowed to take this decision.


भ्रष्टाचार सभी सरकारी दफ्तरों में आम हो गया है| वो तुरंत रोका जाना चाहिए| वरना कुछ सालों में लगभग सारी पूँजी कुछ सेवा निवृत्त सरकारी कर्मचारियों के और उनके बच्चों के हाथ में होगी| इसके साथ ज़मींदारी वाली भाषा क्या असर करेगी ये हम सोच सकते हैं| वो और उनके बच्चे, आम आदमियों और उनके बच्चों से तू तड़ाक करके बात करेंगे| फिर वही अंग्रेजों का ज़माना आ जायेगा, जब ज़मींदार ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करके अपने से नीचे के तबके के लोगों को दबाते और उनपर राज करते थे| आम आदमी ऊंचे दर्जे के लोगों और डकैत जात के लोगों से बात अकरने में और उल्ट जवाब देने में मुश्किल झेलनी पड़ेगी|

Corruption has become common in all government offices. It needs to be stopped immediately. Otherwise within a matter of few years, almost all wealth will be in the hands of a few government retired persons, and their offspring. The effect of this when combined with a feudal language can be imagined. They and their children will be using the feudal words of ‘Thoo’ etc. to the common man’s children. Then it will be back to pre-British times, when the feudal classes used these words to control and suppress those under them. The common man would find it increasingly difficult to debate or talk back, or argue with the higher, dacoit classes.




दूसरा मुद्दा:

SECOND ISSUE:


एक और बहोत बड़े दर्जे की बेईमानी इस देश के आम आदमी के साथ हो रही है| जो विदेशी मुद्रा कमानेवालों से जुडी है| उनके पैसों को बेइन्तहा बढ़ने की आज़ादी है| जबकि आम आदमी की कमाई कोई सुरक्षा नहीं दी जाती|स्थानीय आदमी की १००० की राशि हमेशा १००० ही रहेगी, जबकि विदेशी मुद्रा रखने वाले इंसान की राशि २० से १०० गुना बढ़ जाती है| मतलब उसके १०००, २०००० से १००००० में बदल जाते हैं|एक बार सुझाव दिया गया के एक एनोखा आयकर रखा जाए जिससे कुछ लोगों की बिना किसी कारण बढती आय को रोका जा सके| लेकिन, जिन लोगों को उस धोकेबाजी से फायदा होता था, उन्होनें उस आयकर को आने नहीं दिया| इसके कारण काफी उत्तर भारतीय और कुछ दक्षिण भारतीय राज्य काफी गहरी गरीबी में चले गए|

There is another gigantic cheating of the common people going on in this nation. That is connected to foreign currency earners. Their money is allowed to expand astronomically. At the same time, no protection is given to the earnings of the local man. A 1000 value currency of a local man remains 1000. However, the value of a foreign currency holder is allowed to expand to 20 to 100 times. That is, his 1000 become 20000 to 100000 rupees. There was once a proposal to impose super tax to control the illogical expansion of a few persons’wealth to the skies. However, it was shot down by persons who enjoy the benefits of this fraud. Due to this, many people of many North Indian and some South Indian states have gone into deep penury.


इस देश के लोगों की रक्षा करने के लिये कोई नहीं है| बल्कि वोही लोग जो इस देश को और उसकी जनता को धोखा दे रहे हैं, ये सिखाते हैं के अंग्रेज़ इस देश को लूटके ले गए|सच तो ये है के वो खुद इस देश को, उसके लोगों को और उसके प्राकृतिक सम्पदा को लूट रहे हैं|

There is actually no one to protect the people of this nation. At the same time, the very people who are cheating the nation and its people, teach the people that it is the British who had robbed the nation. The fact is that it is they themselves who are looting this nation, its people and its natural resources.


तीसरा मुद्दा : भारत की केवल ५ प्रतिशत जनसंख्या अंग्रेज़ी जानती है|अमीर और राज करने वाले वर्ग नहीं चाहते के नीचले वर्ग के लोग अंग्रेज़ी सीखें| वो उनसे झूठ बोलते हैं| क्यूंकि अगर आम आदमी के बच्चे अंग्रेज़ी सीख गए, तो उनक मानसिक दर्जे सुधर जायेंगे|

THIRD ISSUE: Only 5% of the Indian population knows English. The ruling and rich classes do not want the lower classes to learn English. They tell them lies. For, if the children of the common man learn English, he and she will improve to higher mental levels.

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